सरकारी संरक्षण में कुख्यात डकैत गिरोह सक्रिय

सरकारी संरक्षण में कुख्यात डकैत गिरोह सक्रिय :
हमारे मुख्यमंत्री मौन तो आखिरकार सुनेगा कौन ?

राजू चारण

बाड़मेर ।। जो व्यक्ति उल्टे उस्तरे से मूंडने में सिद्धहस्त हो तथा अपने टुच्चे से स्वार्थ के लिए लोगो को लूटने में संलिप्त हो, क्या उसे कलयुगी भगवान का दर्जा दिया जा सकता है ? कदापि नही । वह केवल लुटेरा और ब्लेक मेलर है । राज्य सरकार की लापरवाही और चिकित्सा मंत्री की संवेदनहीनता की वजह से पूरे प्रदेश में ऐसे लुटेरों का बोलबाला और खुल्लेआम आतंक है । जनता बुरी तरह लुटने के लिये विवश हो रही है और सरकार अपनी झूठी पब्लिसिटी करने में व्यस्त है ।

बात हो रही है हमारे सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों की । इन्हें कभी भगवान का दर्जा दिया जाता था । लेकिन आज ये सिर्फ और सिर्फ जेब पर डाका डालने वाले ठगों के पर्याय बन गए है । भाड़ में जाए मरीज । इन्हें अपनी जेब भरने से मतलब है । राज्य सरकार की उदासीनता और लापरवाही के चलते डॉक्टर रूपी ये ठग जनता को आंतकित कर दोनों हाथों से लूटने में सक्रिय है । इन लुटेरों को शाय़द राज्य सरकार का पूरा संरक्षण हासिल है ।

वैसे तो आज सब लोग इन लुटेरों की कारस्तानी से वाकिफ है । लेकिन बताना जरूरी समझता हूँ कि आवश्यक न होते हुए भी अनावश्यक जांच कराना इस माफिया का सबसे बड़ा धंधा है आजकल । राज्य सरकार की ओर से सख्त निर्देश दिये हुए है कि कोई भी सरकारी डॉक्टर ब्रांडेड दवा नही लिखेगा । उसे केवल जेनरिक दवा लिखने का ही निर्देश है । लेकिन सरकार का यह आदेश हमेशा की तरह वातानुकूलित कमरों में बैठकर सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा डाइपर की तरह डस्टबिन में डालने के काम आ रहा है । कोई भी डॉक्टर इन आदेशों की पालना नही करते हैं राज्य सरकार को खुल्लेआम अंगूठा दिखा रहा है ।

इन लुटेरों की कहानी बड़ी लम्बी और आतंकित करने वाली है । फिर भी बताना चाहूंगा कि सरकारी डॉक्टर मुख्यमंत्री की मुफ्त दवा योजना को पलीता लगाने के लिए लामबंद है । सरकार कितने ही आंकड़े जारी करदे । लेकिन हकीकत यह है कि मुफ्त दवा योजना का लाभ 50 फीसदी से कम लोगों को ही मिल पा रहा है । इस बात की तस्दीक करनी है तो किसी स्वतंत्र एजेंसी से इसकी जांच-पड़ताल सभी जिलों में कराई जा सकती है ।

सवाल बड़ा अहम है कि जब एसएमएस जयपुर में फ्री दवा और इंजेक्शन देने का प्रावधान है फिर बाहर की दुकानों में दो साल के भीतर 400 फीसदी की बढ़ोतरी क्यों ? अस्पताल के सामने की एक दुकान का 2018 में टर्नओवर 7.60 करोड़ था जो आज इस दफा मार्च में बढ़कर करीब 31 करोड़ हो गया । यह इस बात का परिचायक है कि दवा विक्रेता और डॉक्टर मिलकर लूटने का खुलेआम खेला खेल रहे है । सहकारी भंडार की दुकानें दवा विक्रेताओं के लिए तवायफ का कार्य कर रही है । एनएसी के नाम पर हर माह करोड़ो के वारे न्यारे हो रहे है ।

आजकल जिला मुख्यालयों पर डॉक्टरों और दवाओं के कारोबार में जितना भ्रस्टाचार है, उतना तो शायद राजस्व, पुलिस, आबकारी, परिवहन विभाग और नगर निगम, नगर परिषद, नगर पालिकाओं मे भी नही है । दवा विक्रेताओं से मिलकर डॉक्टर गरीब और असहाय मरीजों को निर्ममता से लूट रहे है । इस गिरोह में एक और अहम किरदार है । जो डॉक्टरों को करोड़ो रूपये कमीशन के रूप में भीख के तौर पर देते है । वह है धन्नासेठों ओर भामाशाहों के डाइग्नोस्टिक सेंटर जो कमीशन (भीख) के तौर पर डॉक्टरों को हर वर्ष करीब 160 करोड़ देते है । वह भी अकेले जयपुर शहर में । डॉक्टरों को 50 से 80 फीसदी तक कमीशन का वितरण किया जाता है । इसका लेखा-जोखा भी इन दुकानदारों द्वारा कोडवर्ड के रूप में निजी डायरियां में लिखा जाता है।

यह खेल कैसे खेला जाता है, इसकी कुछ बानगी बताना चाहता हूँ । उदाहरण के तौर पर किसी डॉक्टर ने एक मरीज़ के दस बारह टेस्ट लिखे । मरीज को डॉक्टर द्वारा हिदायत दी जाती है कि 3 और 8 नम्बर के टेस्ट अर्जेंट करवाने है । यानी डाइग्नोस्टिक सेंटर को केवल 3 और 8 नम्बर की ही जांच करनी है । बाकी के 7 टेस्ट के लिए पैसे लेकर मरीजों की आंखों में धूल झोंकी जा रही है । मान लो कुल बिल हुआ 3480 रुपये । इसमें से करीब 2500 रुपये डॉक्टर के खाते में सीधे ही जमा हो जाएंगे ।

कहने को हमारे राजस्थान में भ्रस्टाचार निरोधक विभाग है । लेकिन यह खुद बहुत बड़ा भ्रस्टाचार का अड्डा है । डॉ अनिल गुप्ता के मामले में इस विभाग की असलियत जनता के सामने आ चुकी है । इस विभाग ने आज तक किसी डॉक्टर की कमीशनखोरी, ज्यादा फीस और ब्रांडेड दवा लिखने के सम्बंध में न तो जांच-पड़ताल की और न ही जांच-पड़ताल का कोई इरादा है । चोर चोर मौसेरे भाई वाली कहावत शायद एसीबी पर लागू हो रही है ।

एसीबी सफाई दे सकती है कि उसके पास किसी डॉक्टर के खिलाफ शिकायत नही आई । इसका जवाब यह है कि मैं इस पोस्ट के जरिये शिकायत प्रेषित कर रहा हूँ । एसीबी को चाहिए कि वह डाइग्नोस्टिक सेंटरों के कम्प्यूटरों की जांच करें । सारा कच्चा चिट्ठा सामने आ जायेगा । शुरुआत एसएमएस के सामने किरण डाइग्नोस्टिक सेंटर और गणेशजी मंदिर के पास एसआर प्राइम से की जा सकती है ।

अब तो लात घूंसे भी चलाने लगे है डॉक्टर

एसएमएस के गेस्ट्रोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ रूपेश पोखरना अपनी दुकान का दोपहर में ही शटर खोलकर बैठ जाते है । राज्य सरकार द्वारा निर्धारित फीस से काफी ज्यादा फीस वसूली जाती है । अधिकांश मरीजों को सोनोग्राफी, गेस्ट्रोस्कोपी, एंड्रोस्कोपी कराने के लिए बाध्य किया जाता है । बाहर एक रिशेपनिस्ट और अंदर पैसे लेने वाला लड़का तैनात रहता है । डाइग्नोस्टिक सेंटर की छपी पर्ची होती है । मरीज को समझाया नही, बल्कि बाध्य किया जाता है कि गणेशजी के मंदिर के पास ही सारे टेस्ट कराने है ।

एक मरीज जेएलएन मार्ग स्थित डाइग्नोस्टिक सेंटर से जांच करा लाया । डॉ रूपेश ने उसको घटिया बताते हुए एसआर प्राइम से जांच करने का हुक्म दिया । जीएसआई में कार्यरत एक अभियंता फीस के पैसे दे चुका था । मरीज बाहर जाने लगा तो डॉ रूपेश और कर्मचारी दौड़ते हुए बाहर आये और मरीज की गिरहबान पकडते हुए फीस मांगने लगे । मरीज ने बताया कि वह फीस दे चुका है । लेकिन डॉ नही माना । खूब हाथापाई हुई और भीड़ एकत्रित होगई ।

गेस्ट्रोलॉजी विभाग के ही एक अन्य डॉक्टर गौरव गुप्ता का किस्सा बताना भी प्रासंगिक होगा । लिवर की बीमारी के लिए एम्स के डॉक्टर ने टेबलेट ओकाबिल लिख रखी थी जिसकी कीमत करीब 120 रुपये है । डॉ गुप्ता ने इस दवा को नकारा बताते हुए Tab Blipysa लिख दी । इस दवा की कीमत है करीब 1250 रुपये । जबकि इसी साल्ट की lypaglyn की कीमत है मात्र 290 रूपये । दोनों में एक ही साल्ट (saroglitazar 4 mg) है ।

मजे की बात यह है कि डॉ गुप्ता ने विक्रेता का नम्बर भी अपनी पर्ची पर लिख दिया ताकि कमीशन के 650 रुपये बटोरे जा सके । क्या यह सरेआम लूटपाट नही है ? सरकारी डॉक्टर की यह कारस्तानी भ्रस्टाचार और अनुशासनहीनता की श्रेणी में नही आती है ? वरिष्ठ विधिवेत्ता जीपी शर्मा का कहना है कि पैसों का लेनदेन ही भ्रस्टाचार नही होता है । गलत तरीके से पैसे ऐंठना भी बहुत बड़ा भ्रस्टाचार होता है ।

सरकार को चाहिए कि डॉक्टरों की डाकाज़नी पर लगाम लगाने के लिए हर दो साल बाद डॉक्टरों का तबादला किया जाना चाहिए ताकि मरीजो की जेब नही कट सके । एसएमएस के अधिकांश डाक्टर अपनी नियुक्ति से लेकर आज तक जयपुर में मलाईदार पदों पर जमे हुए है । सरकार को जनहित का नाटक बन्द करते हुए डॉक्टरों को इधर से उधर स्थानांतरित करना चाहिए । जिससे गरीब मरीजो का कुछ तो भला हो सके । सुझाव अवश्य दे रहा हूँ । लेकिन मैं जानता हूँ कि संवेदनहीन सरकार कुछ नही करने वाली है । हर सरकारी डॉक्टर आज-कल दो चार मंत्री और लगभग दस-पन्द्रह विधायकों को अपनी जेब मे लिए फिरता रहता है ।

पूर्व चिकित्सा मंत्री माधव सिंह दीवान के बाद चिकित्सा विभाग सिर्फ और सिर्फ चारागाह बनकर रह गया है जिसे हर मंत्री चरने में लगा हुआ है । राजेन्द्र चौधरी, दुर्रू मियां, राजेन्द्र राठौड़, दिगम्बर सिंह, कालीचरण सराफ, बीडी कल्ला और रघु शर्मा आदि सब चिकित्सा विभाग के प्रति उदासीन रहे । नतीजतन चिकित्सा विभाग आज भ्रस्टाचार का राज्य के सभी जिलों में सबसे बड़ा अड्डा बनकर रह गया है ।